छत्तीसगढ के पुरातात्विक / दर्शनीय स्थल

  • कोटाडोल (कोरिया) - बनास और गोपथ नदी के संगम पर स्थिति, मौर्यकालीन सभ्यता के प्रमाण और अशोक का सिंह स्तम्भ मिला है।

  • महेशपुुर (सूरजपुर) - सूरजपुर जिले का यह एतिहासिक पुरातात्विक स्थल रेणुका नदी के किनारे स्थित है। यहाॅं पर दसवीं शताब्दी में निर्मित शिव मंदिर का निर्माण मिला है। इसके अलावा दसवीं शताब्दी में निर्मित भगवान विष्णु के दो विशाल अवशेष ‘कुडि़या-झोरी मोरी’ के नाम से मिला है। यहीं पर तीर्थंकर ऋषभदेव की प्रतिमा प्राप्त हुई। 
  • डीपाडीह (बलरामपुर) - बलरामपुर के सामरी तहसील में स्थित है। कोटली जलप्रपात कन्हार नदी मंे स्थित है। तथा सामंत सरना का भी मंदिर स्थित है। यहाॅं पर लगभग 6 किमी. के दायरे में अनेक मंदिरों के समूह मिले हैं जिनमें कार्तिकी, विष्णु, महिषासूर मर्दिनी की प्रतिमा प्राप्त हुई है।

  • रामगढ (सरगुजा) - उदयपुर के निकट राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 130 बिलासपुर-अंबिकापुर से लगा हुआ रामगढ़ का पहाड़ है। रामगढ की पहाड़ी का उल्लेख कालिदास के मेघदूत में मिलता है। मेघदूत का छत्तीसगढ़ी अनुवाद मुकुटधर पाण्डेय के द्वारा किया गया है। रामगढ़ के पहाड़ में ही सीतामोंगरा और जोगीमारा की गुफाएं है। इनकी खोज कर्नल आउसले ने की। 
  • सीताबोगरा (सरगुजा) - विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला के रूप में विख्यात जो रामगढ़ के पहाड़ी में स्थित है।
  • जोगीमारा (सरगुजा) - इसे छ.ग. की अजन्ता के रूप में विख्यात, मौर्यकालीन गुफा चित्र के लिए जाना जाता है। इस गुफा में ब्राह्मी लिपि का अभिलेख है। इस गुफा में देवदासी सुतलुका के चित्र है। इस गुफा की खोज कर्नल आउस्ले नें किया था। 
  • मैनपाट (सरगुजा) - छ.ग. के शिमला के नाम से जाना जाता है। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 1084 मीटर है। यहां पर कई दर्शनीय स्थल हैं। मेहता प्वाइंट, टाइगर प्वाइंट, ईको प्वाइंट तथा फिस प्वाइंट यही पर स्थित है। यहां पर आलू अनुसंधान केन्द्र स्थित है। मैनपाट में ही 1961 में भारत नें तिब्बत शरणार्थियों को बसाया था। छ.ग. शासन की पुलिस एकेडमी खोलनें का प्रस्ताव है। शरभंजा जलप्रपात यहीं पर है। मैनपाट से ही मांडनदी का उद्गम होता है। यहीं से मतिरिंगा पहाड़ी से रिहंद नदी का उद्गम होता है।
  • कुनकुरी (जशपुर) - राज्य का कैथोलिक ईसाइयों का सबसे बडा चर्च है। 

  • तपकरा (जशपुर) - छ.ग. मेे नागलोक के लिए जाना जाता है।

  • लुडैग (जशपुुर) - राज्य की टमाटर राजधानी के नाम से विख्यात है।
  • पाली (कोरबा) - प्राचीन बाणवंशीय राजाओं की राजधानी थी। बाणवंशीय राजा विक्रमादित्य जिसे ‘‘जैमउ‘‘ कहा जाता था उसने यहां के सुप्रसिद्ध शिव मंदिर का निर्माण करावाया जो खजुराहों शैल पर आधारित है। इस मंदिर का जीर्णोंद्धार कलचुरि राजा जाजल्लदेव ने करवाया था।

  • लाफागढ़ (छत्तीसगढ़ का चित्तौड़) - कोरबा जिले के पाली के निकट लाफागढ़ की पहाडि़यां हैं जो भौगोलिक रूप से पेंडरा लोरमी के पठार के तहत आती है। लाफागढ़ अपने प्राचीन किले के लिए जाना जाता है। इस किले  का निर्माण कलचुरि शासक बाहरेन्द्र सायं के समय हुआ था। इस किले माहामाया का सुप्रसिद्ध मंदिर है। जिसके अवशेष आज भी स्थित है। इस किले के द्वार सिंह द्वार प्रसिद्ध है, दूसरा मेनका द्वार हैं। यहां किले की पहाड़ी से जटासंकरी नदी का उद्गम होता है। 
  • चैतुरगढ़ (छत्तीसगढ़ का कश्मीर) - लाफागढ़ के पहाड़ी के ऊपरी भाग को चैतुरगढ़ कहा जाता है। यह समुद्र तल से 3240 फीट के ऊंचाई पर है। 

  • कुदूरमाल (कोरबा) - यह कबीरपंथियों का तीर्थ स्थल है। यहां पर कबीर पंथ के प्रथम महंत धरमदास के पुत्र चूड़ामन इन्हें मुक्तामणि नाम साहेब के नाम से जाना जाता था। आप छत्तीसगढ़ कबीरपंथ शाखा के प्रथम आचार्य रहे। इनकी समाधि कुदूरमाल में स्थित है। यहां पर प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा के समय कबीरपंथियों का मेला लगता हैं। 


  • तालागांव (बिलासपुर) - मनियारी नदी के किनारे स्थित है। छ.ग. का सबसे प्राचीन मंदिर देवरानी - जेठानी का मंदिर है जो कि शरभपुरिया वंश के राजाओं के द्वारा बनवाया गया था। यहां पर रूद्र शिव की विलक्षण प्रतिमा प्राप्त हुई है। देवरानी-जेठानी मंदिर पत्थरों से बना हुआ मंदिर है। इस मंदिर के द्वार में पत्थरों में संगीत, नृत्य  से संबंधित मूर्तियां बनी हैं। इसलिए संगीत से संबंधित छत्तीसगढ़ में प्राचीनतम मूर्ती कला है। इन मूर्तियों में पुष्प लता वल्लरियों, गंगा यमुना, उमा महेश्वर, शिव पार्वती का चैसर क्रीड़ा, गंगा अवतरण, आदि का सुन्दर अंकन हैं। 
  • रूद्र शिव की विलक्षण प्रतिमा - तालागाॅंव में पुरातात्विक उत्खनन से 6वीं शताब्दी ई. में लगभग 5 टन वजनी शिव की विशिष्ट मूर्ति मिली है। यह मूर्ति पशुपति शिव का प्रतीक है। नरमूण्ड धारण किए हुए पशुओं का चित्रण युक्त यह मूर्ति विशेषता लिए हुए हैं। 
  • राजिम - छ.ग. का प्रयाग के नाम से विख्यात है। यहां पर महानदी, पैरी और सोढुर नदी पर स्थित है। राजिम का प्राचीन नाम पद्मावती पुरा था। इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहते हैं।


  • राजीवलोचन मंदिर - महानदी के किनारे पंचायन शैली में बना यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण नलवंशीय राजा विलासतुंग ने करवाया था। मंदिर का जीर्णोद्धार कलचुरि राजा पृथ्वी देव द्वितीय के सेनापति जगतपाल ने करवाया था। जगतपाल की मूर्ति मंदिर के प्रांगण में लगी हुई है। 
  • चम्पारण (महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मस्थली) - राजिम के निकट रायपुर जिले में महानदी के किनारे चम्पारण स्थित है। यहाॅं पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य का जन्म तैलंग ब्रहा्रमण लक्ष्मण भट्ट और इलमागारू के यहाँ हुआ। चम्पारण में प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को विशाल मेला लगता है ।

  • चन्द्रखुरी - रायपुर से 30 किमी. की दूरी पर स्थित चन्द्रखुरी में 13वीं शताब्दी का एक शिवमंदिर है। यहाॅं पर माता कौशिल्या का मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि रामायण काल में दक्षिण कौशल के राजा भानुमत थे , उनकी पुत्री कौशिल्या थी। चन्द्रखुरी में राज्य प्रशासन अकादमी स्थित है। 


  • कुलेश्वर महादेव का मंदिर - पैरी, सोढूर और महानदी के संगम पर यह मंदिर स्थित है। इस मंदिर को केन्द्र में  रखकर छत्तीसगढ़ में पंचकोशी यात्रा का आयोजन होता है। जो कमल की पंखड़ी नुमा क्षेत्रफल में फैली हुई शिव  मंदिरों को केन्द्र में रखकर की जाती है। जिनमें - पटेश्वर महादेव मंदिर(पटैवा), चम्पेश्वर (चम्पारण), कोपेश्वर,  (कोपरा), बहा्रनेश्वर (बहानी), तथा फिंगेश्वर (फिंगेश्वर) आदि है इसलिए इसे पंचकोशी कहा जाता है। 

  • सिरपुर (श्रीपुर) - महासमुंद जिले की उत्तर-पश्चिमी बलौदा-बाजार जिले के सीमांत क्षेत्र में महानदी के किनारे  सिरपुर स्थित है। यह राज्य का प्रथम पुरातात्विक स्थल है। जिसका उत्खनन 1953 में सागर विश्वविद्यालय के  पुरातत्व वेत्ता श्री एम.जी.दीक्षित के नेतृत्व में दिया गया। सिरपुर को प्राचीनकाल में चित्रांगदपुर भी कहा जाता था। महाभारत कालीन अर्जुन के पुत्र भब्रुवाहन की राजधानी थी। इसे मणिपुर और हीरापुर के नाम से भी जाना जाता है। सिरपुर शरभपुरियावंश और सोम और पाण्डुवंश की राजधानी रही। बौद्धग्रंथ अवदान शतक के अनुसार महात्मा  बुद्ध सिरपुर आये थे। सिरपुर में सोमवंश के शासक महाशिवगुप्त बालार्जुन (595-655) के शासनकाल को छत्तीगढ़ का स्वर्ण युग कहा जाता है। इसके शासनकाल में चीनी यात्री हे्रनसांग ने छत्तीसगढ़ की यात्रा की और इस क्षेत्र  को ‘किया-स-लो’ कहा।


  • सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर - गुप्त कालीन पकी हुई ईंटों से बनी भारत की पहली तीन मंदिरों में से एक यह मंदिर  नागर शैली में बना है। इस मंदिर का निर्माण सोमवंशीय शासक महाशिवगुप्त बालार्जुन के समय उसकी माॅं वासाटा  ने अपने पति हर्षगुप्त के स्मृति में बनवाया था। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। किन्तु गर्भगृह में शेषनांग में बैठे हुए लक्ष्मण जी की मूर्ति है इसलिए इसे लक्ष्मण मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में महाकवि इशान द्वारा रचित प्रशस्ति अभिलेख है।
  • सिरपुर का गंधेश्वर महादेव मंदिर - दसवीं शताब्दी का भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर महानदी के किनारे स्थित है।इस मंदिर का जीर्णाेद्धार मराठा शासक चिमना जी भोसले ने करवाया था।
  • आनंद प्रभु कुटीर और स्वास्तिक बौद्ध विहार - पुरातात्विक उत्खनन में सिरपुर में बौद्ध धर्म से संबंधित ये ईमातें प्राप्त हुई।

Teeverdev maha prabhu mandir

  • तारा की अष्ट धातु प्रतिमा - पुरातात्विक उत्खनन में सिरपुर में बौद्ध धर्म से संबंधित तारा के विलक्षण प्रतिमा प्राप्त  हुई जो वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका में लाॅसएजिल्स के एक विशेष संग्रहालय में रखा गया है।

  • पचराही (कवर्धा) - पचराही का प्राचीन नाम कंकालिन टीला है जिसकी खोज पाॅजीटर महोदय नें की थी। यह हाप नदी के किनारे है। पचराही वर्तमान में कवर्धा जिले के बोडला तहसील से 27 किमी. उत्तर में स्थित है।मैकल  पर्वत की उपत्यका में स्थित है। सुप्रसिद्ध पुरातात्विक वेत्ता अरूण शर्मा के नेतृत्व में उत्खनन किया जा रहा है।  उत्खनन से यहाॅं पर प्राचीन महल के प्रमाण तथा अनेकों मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। लगभग 2000 वर्ष पूर्व साल पहले पचराही एक प्रमुख नगर था। यहाॅं प्राचीनतम मोहर और सिक्के प्राप्त हुए हैं।


  • शिवरीनारायण - छत्तीसगढ़ के गुप्त प्रयाग के नाम से विख्यात जांजगीर-चांपा जिले के इस धार्मिक नगर में  महानदी से शिवनाथ और जोंक आकर मिलती है। यह स्थल छत्तीसगढ़ के वैष्णव पंथ के अनुयायिओं के लिए  सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहाॅं पर नर-नरायण मंदिर, केशव नारायण मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, चंद्रचुड़ महादेव का  मंदिर (कुमार पाल नामक कवि) ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। जो यहाॅं पर स्थित है। माघ पूर्णिमा में यहाॅं पर विशाल मेला लगता है। ऐसी मान्यता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने शबरी के झूठे बेर यहीं खाएं थे।

  • चंद्रपुर - जांजगीर-चांपा जिले का पूर्वी छोर पर महानदी के तट पर स्थित कस्बा माॅं चंद्रहासनी के मंदिर के लिए  जाना जाता है। कोसा वस्त्रों के लिए सुप्रसिद्ध यह कस्बा जहाॅं पर महानदी का सर्वाधिक चैड़ापाट हैं


  • खरौद (इंद्रपुर) - शिवरीनारायण के निकट स्थित यह स्थल जिसे प्राचीनकाल में इंद्रपुर कहा जाता था। लक्ष्मणेश्वर महादेव के मंदिर के लिए जाना जाता है। यहाॅं शिवलिंग में एक लाख छिद्र है। इसे छत्तीसगढ़ की काशी कहा जाता हैं


  • चांपा - हसदो नदी के पूर्वी तट पर स्थित यह नगर प्राचीनकाल में मदनपुर के नाम से जाना जाता है। जो कोसा  वस्त्रों का केन्द्र था। चांपा में कोसा अनुसंधान केन्द स्थित है। यहीं पर अखिल भारतीय हस्तशिल्प प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किया गया है। चांपा बाम्बे हावड़ा रेलमार्ग में स्थित है। यहाॅं से कोरबा के लिए रेलमार्ग निकलता हैं।

  • अड़भार - जांजगीर-चापा जिले में अड़भार नामक स्थल है। यह ‘सक्ति’ रेलवे स्टेशन के निकट है। यहाॅं कलचुरि कालीन सर्वश्रेष्ट स्थापत्य का प्रमाण मिलता हैं काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित विशाल दरवाजा मिला है। जिसमें  विभिन्न मूर्तियों का अंकन अद्वितीय है। अड़भार में अष्टभुजी माता का प्राचीन मंदिर है।
  • मल्हार - बिलासपुर जिले की मस्तुरी तहसील में मल्हार नामक एतिहासिक पुरातात्विक स्थल है। इसके पूर्व में  लीलागर नदी बहती है। इस नदी को प्राचीनकाल में निडिला नदी कहा जाता था। मल्हार के दक्षिण में मल्हार  और पश्चिम में अरपा नदी प्रवाहित होती है। मल्हार प्राचीनकाल में मल्हार पट्टनम के नाम से जाना जाता था।  यह शरभपुरिया राजवंशों की राजधानी रहा। मल्हार में पातालेश्वर महादेव मंदिर, केदारेश्वर महादेव मंदिर, डिडनेश्वरी  दाई मंदिर, देउरमंदिर आदि प्रमुख है। मल्हार में रोमन सिक्के प्राप्त हुए हैं।


  • बुढी़खार - मल्हार के निकट स्थित बुढी़खार में भगवान विष्णु की काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी हुई चतुर्भुज मूर्ति  प्राप्त हुई है।
  • अबुझमाड़ - नारायणपुर जिले के ओरछा ब्लाक में अबुझमाड़ क्षेत्र स्थित है। यह मुडि़या आदिवासियों के लिए  जाना जाता है। जो राज्य की प्रागैतिहासिक पिछड़ी जनजाति है। यह जनजाति अपने युवा आवास गृह घोटुल के  लिए जानी जाती है। इंग्लैण्ड के सुप्रसिद्ध मानव वैज्ञानिक वेरियर एल्विन ने इन पर अपनी पुस्तक ‘‘The muriyas and there Ghotul " में इस पर प्रकाश डाला है। घोटुल में युवकों को चेलिक कहते हैं और युवतियों को मुटियारिन कहते है। घोटुल के देवता लिंगोपेन कहते हैं। घोटुल में किये जाने वाले नृत्य को ककसाड़ कहते  हैं। राज्य सरकार ने अबुझमाड़ क्षेत्र में भारतीय थल सेना का प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित करने का सुझाव रखा है।

  • अरपानदी - बिलासपुर जिले में खोडरी के पहाडि़यों से निकलती है। पेण्ड्रा के निकट इस नदी के किनारे प्रागैतिहासिक धनपुर नामक स्थल है। जहाॅं पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं। बिलासपुर नगर अरपा नदी के किनारे हैं। इस नगर का निर्माण कलचुरि शासक रत्नदेव द्वितीय ने बिलासा केवटिन की स्मृति में करवाया था। अरपा नदी  की सहायक नदियों में मनियारी और खारंग है। यह नदी आगे जाकर मानिकचैरी नामक स्थल पर शिवनाथ नदी  में मिल जाती है। राज्य सरकार के वर्तमान में निर्माणाधीन सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना भैसाझार परियोजना हैं,  जो बिलासपुर के बिलहा के निकट अरपा नदी पर बन रही है।
  • आगरनदी - यह नदी पण्डरिया की एक पहाड़ी से निकली है और कुकुसदा ग्राम के समीप मनियारी नदी में जा  मिली है। इसके तट पर मुंगेली बसा हुआ है, मुंगेली जिले में आगर महोत्सव मनाया जाता है।
  • आरंग (मंदिरों का नगर) - रायपुर जिले का यह प्राचीन शहर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 पर स्थित है। यहाॅ पर 10वीं शताब्दी का प्राचीन मंदिर बाघेश्वर महादेव का मंदिर है। इसके अलावा 12वीं शताब्दी में निर्मित जैन मंदिर  भांड देवल का मंदिर है। यहाॅं जैन तीर्थकर नेमीनाथ, अजीत नाथ, तथा श्रेयांश की 6 फीट ऊंची ग्रेनाइट मूर्तियां  हैं। इस नगर को पौराणिक शासक राजा मोराध्वज से संबंधित किया जाता है।

  • ओंगना - धर्मजयगढ़ (रायगड़) के दक्षिण-पूर्व में लगभग 5 किमी. की दूरी पर ओंगना की पहाडि़यों मे दो सौ फुट की ऊंचाई पर आदिमानव के शैलचित्र मिले हैं। इनमें आखेट, सामूहिक नृत्य, विचित्र वेशभुषा वाली मानव -आकृतियों के साथ गाय, बैल आदि का चित्रांकन है।

  • महापाषाण स्तम्भ (Megalith) - बालोद जिले में प्रागैतिहासिक महापाषाण स्तम्भ मिले हैं, जो दक्षिण भारतीय  आदिम संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं ये महापाषाण स्तम्भ कोरर, सोरर, करकाभाट करहीभदर, चिरचारी आदि में मिले हैं।


  • करमागढ़ - रायगढ़ से 30 किमी. दूर उत्तर-पूर्व में करमागढ़ पहाड़ है। करमागढ़ के पहाडि़यों में 300 से अधिक  शैल चित्र मिले हैं। यहाॅ। के शैल चित्रों में  कोई भी मानव आकृति का अंकन नहीं। इन शैल चित्रों में मेढ़क, मछली, साॅंप,कछुआ, छिपकली, जंगली सूअर, गोह, तथा लता पुष्प से युक्त कुंज जिसमें तितलियों का अंकन है।  इसके अलावा जलसरोवर और कमल का चित्र बना हुआ है।

  • कांकेर - यह नगर सोमवंशी-शाखा की राजधानी थी। इसका प्राचीन नाम ‘काकरय’ था। यहाॅं सिंहवासिनी का  मंदिर, बालाजी का मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, कंकालिन मंदिर, शीतला मंदिर, गढि़या पहाड़ (किला डोंगरी) तथा  जोगीय-गुफा आदि दर्शनीय हैं। कांकेर नगर उत्तर बस्तर जिले का जिला मुख्यालय है। यह दूध नदी के किनारे  स्थित है। नगर के उत्तर-पूर्व में सुप्रसिद्ध गढि़या पहाड़ है। कांकेर के निकट ही राज्य का प्रथम जंगलवार फायर महाविद्यालय स्थित है। कांकेर में लाख अनुसंधान और प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किया गया है।
  • कबरा - पहाड़: रायगढ़ जिले में शैलचित्रों के कारण प्रसिद्ध है। यह रायगढ़ से 8 किमी. पूर्व में है। कबरा  पहाड़ अपने सुप्रसिद्ध प्रागैतिहासिक गुफा चित्रों के नाम से जाना जाता है। यहाॅं कछुआ, घोड़ा, हिरण, जंगली भैंसा, तथा लहरदार पंक्तियों के मध्य एक बाघ और घबराए हुए मुनष्य का चित्र है। कबरा पहाड़ में ही पंक्तिबद्ध मानव  समूहों का चित्रण किया गया है।

  • कवर्धा - कबीरधाम जिले का जिला मुख्यालय कवर्धा है। इस नगर की स्थापना छत्तीगसढ़ में कबीर पंथ के  आठवे गुरू हकनाम साहब जो वास्तुविद थे, ने घने वनों को कटवाकर की थी। कवर्धा प्राचीन रियासत रही। प्राचीनकाल में कवर्धा में फणीनागवंशीय राजाओं ने शासन किया। मड़वा महल अभिलेख से पता चलता है कि इस  वंश का संस्थापक अहिराज था। 
  • भोरमदेव मंदिर - छत्तीसगढ़ के खजुराहों के नाम से विख्यात इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में फणीनागवंशीय राजा गोपाल देव ने करवाया था। यह मंदिर नागर शैली में बना तांत्रिक मंदिर है। मंदिर कवर्धा से 18 किमी. दूर उत्तर-पश्चिम में मैकल पर्वत की उपत्यका में चैराग्राम के निकट स्थित  है। बलवे पत्थर से निर्मित यह मंदिर मैथुन शिल्प के लिए जाना जाता है।

  • मड़वा महल - भोरमदेव मंदिर से 1 किमी. पहले छपरी ग्राम के निकट मड़वा महल स्थित है। इसका निर्माण फणीनागवंशीय राजा रामचंद्रदेव में चैदहवीं शताब्दी में कलचुरि राजकुमारी अंबिकादेवी से अपने विवाह के उपलक्ष्य  में करवाया था।

  • छेरकी महल - मड़वा महल से एक किमी. दक्षिण की तरह छेरकी महल है। यह एक छोटा मंदिर हैं, जहाॅं बकरी  की गंध फैली रहती है।

  • बदरगढ़ - मैकल पर्वत की सबसे ऊंची चोटी लीलावानी है। जो मध्यप्रदेश में है किन्तु छत्तीसगढ़ में मैकल पर्वत  की सबसे ऊंची चोटी बदरगढ़ है और 1176 मीटर इसकी ऊंचाई है।
  • सरोंदा प्वांट - कवर्धा जिले के मध्य-पश्चिम मध्य प्रदेश के सीमांत क्षेत्र में चिल्फीघाटी स्थित है। यहाॅं से राष्ट्रीय  राजमार्ग क्रमांक 30 गुजरता है। चिल्फी में ही सरोंदा प्वांइट है, जो सनसेट और सनराइजिंग प्वांइट के नाम से  जाना जाता है।

  • काॅंगेर घाटी - जगदलपुर नगर से 27 किमी. दक्षिण-पूर्व में कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान स्थित है, जो क्षेत्रफल  में राज्य का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान है। कांगेर घाटी पहाड़ मैना के लिए जाना जाता है
  • कुटुमसर की गुफाएं (Cave of Carlsbed in India) - इन गुफाओं की खोज डाॅ. शंकर तिवारी ने की थी।  कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में चुना-पत्थर से निर्मित आकृतियों जिन्हें स्टैलेक्टाइट ये वे आकृतियां होती है जो  गुफा की छत से चुना युक्त जल के बहाव से बनती है जबकि स्टैलेग्माइट वे आकृतियां होती है जो गुफा के  धरातल में चुना-पत्थर के जमाव से बनती है। इस गुफा में अंधी मछलियां पाई जाती हैं जिनका नाम केपीओला संक्राइत किया गया है।


  • भैंसादरहा - कांगेर घाटी से लगा हुआ जो प्राकृतिक तौर पर मगर मच्छ के नाम से जाना जाता है।
  • तीरथगढ़ जलप्रपात - बस्तर जिले के दरभा ब्लाक में कांगेर मुनगा और बहार नदी के द्वारा बनाया हुआ राज्य का  सबसे ऊंचा जलप्रपात जिसे छत्तीसगढ़ का ‘साल्ट एंजिल्स आॅफ छत्तीगसढ’ कहते है।

  • आसना - सल्फी प्रशंसकरण केन्द्र के नाम से स्थित है।
  • चित्रकोट (भारत का नियाग्रा फाल्स) - जगदलपुर से 40 किमी. पश्चिम की ओर इंद्रावती नदी पर सुप्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात स्थित है। घोड़े की नाल के आकार का यह जलप्रपात जहां 90 मी. की ऊंचाई से पानी गिरता है। इस जलप्रपात के निकट ही नारंगी नदी इंद्रावती में आकर मिलती है।

  • बारसूर - दंतेवाड़ा जिले के  उत्तर में इंद्रावती नदी के किनारे बारसूर नामक सुप्रसिद्ध पुरातात्विक स्थल है। यहाॅं  दसवीं शताब्दी छिंदक नागवंशी स्थापत्य का सबसे सर्वश्रेष्ठ उदाहरण मिलता है। बस्तर के छिंदक नागवंशी शासक ध्रुधारा वर्ष के अमात्य चंद्रादित्य ने यहांॅ चंद्रादित्य महादेव का मंदिर मामा-भांजा का मंदिर, बत्तीसा मंदिर और भगवान गणेश की लगभग छः फीट ऊंची युगल प्रतिमा स्थित है। बारसूर के निकट ही इंद्रावती नदी में नदी की  धारा सात भागों में बॅंट जाती है जिसे ‘सत धारा’ कहते है। जो निम्न है- ‘बोधधारा’, कपिलधारा, पाण्डवधारा,  कृष्णधारा, शिवधारा, बाणधारा और शिवचित्रधारा आदि सात धरायें बनाती हैं।

  • भोंगापाल - नारायणपुर जिले में भोंगापाल नामक एतिहासिक पुरातात्विक स्थल हैं जहाॅं ईंटों से निर्मित अनेक  मंदिरों का समूह प्राप्त हुआ है। मौर्यकालीन बुद्ध की प्रतिमा बौद्ध बिहार के अवशेष और कुषाणकालीन सप्तमातृका की प्रतिमा प्राप्त हुई।
  • गढ़धनौरा -  कोण्डागाॅंव जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 30 मे केशकाल घाटी में लगा हुआ यह सुप्रसिद्ध  एतिहासिक पुरातात्विक स्थल है। इस स्थल की खोज का श्रेय बस्तर या रियासत के दिवान बैजनाथ पंडा को  जाता है। यहाॅं पर ईंटों से निर्मित शिव मंदिर, विष्णु मंदिर और बंजारिन माता का मंदिर स्थित है।
  • नारायणपाल - जगदलपुर से 40 किमी. दूर इंद्रावती नदी के किनारे यह एतिहासिक स्थल है। नाराणपाल में  भद्रकाली का मंदिर भगवान विष्णु या नारायण का मंदिर स्थित है। यह मंदिर बेसिर शैली का है।
  • कैलाशगुफा - कांगेर घाटी नेशनल पार्क में ओडीसा सीमांत क्षेत्र में यह गुफा स्थित है। यह चुना-पत्थर की आकृतियों के लिए जानी जाती है।
  • दंतेवाड़ा - दंतेवाड़ा जिले का जिला मुख्यालय 2012 में इस जिले से सुकमा को पृथक कर दिया गया। यह  भू-आवेष्टित जिला है। दंतेवाड़ा नगर माॅं दंतेश्वरी मंदिर के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण चैदहवीं शताब्दी चालुक्य काकतीय शासक अन्नम देव ने करवाया था। यह मंदिर डंकनी और संखिनी नदी के संगम पर तरालागाॅंव में स्थित है। दंतेवाड़ा राज्य में प्रथम लाइवलीहुड महाविद्यालय के लिए जाना जाता है। इस जिले में बैलाडिला के लौह अयस्क की खदाने हैं।
  

  • गीदम - राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 63 पर स्थित इस कस्बे में एन.एम.डी.सी. लघु इस्पात संयंत्र की स्थापना करने  की घोषणा की है।
  • नंदीराज पर्वतचोटी - दंडकारण्य के पठार की सबसे ऊंची पर्वतचोटी जो छत्तीसगढ़ में गौरलाटा (1225 मी.)  के बाद दूसरी सबसे ऊंची (1210 मी.) पर्वतचोटी है।
  • भोपालपट्टनम (पुष्करावती) - बीजापुर जिले का पश्चिमी सीमांत क्षेत्र प्राचीनकाल में नलनागवंशी शासक स्कंदवर्मन  ने कोरापुट के उपरांत अपने सम्राज्य की दूसरी राजधानी बनाया। यह नगर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 63 पर स्थित  है। यहाॅ से राज्य का सबसे छोटा राज्य राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 163 गुजरता है।
  • भद्रकाली - बीजापुर जिले का यह कस्बा जहाॅं इंद्रावती नदी गोदावरी नदी में आकर मिलती है। यहाॅं पर माॅं  भद्रकाली का सुप्रसिद्ध मंदिर है।
  • गोलापल्ली की पहाडि़यां - राज्य के सुदूर दक्षिणतम भाग में स्थित मूलतः बीजापुर और सुकमा जिले में इनका  विस्तार है। ये पहाडि़यां अभ्रक के भंडार के लिए जानी जाती है।
  • अलबाका का पठार - बीजापुर जिले के दक्षिणी-पश्मिची भाग में यह पठार स्थित हैं।
  • गोगुण्डा की पहाड़ी - ये पहाडि़यां बीजापुर और दंतेवाड़ा क्षेत्र के मध्य सीमांत क्षेत्र में फैले हुए हैं। टीन अयस्क  के भण्डार के लिए जाने जाते हैं।
  • कोंटा - सुकमा जिले का यह कस्बा शबरी नदी के किनारे स्थित है। राज्य का दक्षिणतम नगर जिसके एक तरफ  तेलंगाना  राज्य और दूसरी तरफ उडि़सा की सीमाएं हैं। हाल ही में कोचम पल्ली बांध की निर्माण के संबंध में  काफी चर्चित रहा।
  • कोण्डागाॅंव - नारंगी नदी के किनारे स्थित छत्तीसगढ़ के शिल्प ग्राम के नाम से विख्यात है।
  • सिहावा - धमतरी जिले का सिहावा पर्वतीय क्षेत्र है। सिहावा की पहाडि़यों से महानदी का उद्गम होता है। जो  श्रृंगी  ऋषि के आश्रम के निकट है। श्रृंगी  ऋषि के प्रिय शिष्य महानंदा के नाम से इसका नाम महानदी पड़ा। इसे चित्रोत्पला, निलोत्पला और कनकनंदनी के नाम से भी जाना जाता है। सिहावा के निकट कर्णेश्वर की  पहाडि़यां  है। जहाॅं कर्णेश्वर महादेव का मंदिर है।
  • धमतरी - धमतरी नगर को प्राचीन काल मेें धरमतराई के नाम से भी जाना जाता था। यह राष्ट्रीय राजमार्ग  क्रमांक 30 में स्थित है। यहाॅं राजचन्द्र मंदिर, बिलाई माता का मंदिर, जगदीश मंदिर आदि प्रमुख हैं।
  • खल्लारी - प्राचीनकाल में खल्लवाटिका के नाम से सुप्रसिद्ध महासमुंद जिले में स्थित है। छत्तीसगढ़ में कलचुरि साम्राज्य  की दो शखाए थी। रतनपुर शाखा और रायपुर शाखा। रायपुर शाखा की राजधानी खल्लारी थी। यह  कलचुरि राजा रामचंद्र देव राय की राजधानी रही। इसी ने अपने पुत्र ब्रम्ह्देव राय की याद में रायपुर नगर बसाया था। खल्लारी में देवपाल मोची द्वारा निर्मित नारायण मंदिर स्थित है। खल्लारी की पहाड़ी में खल्लारी माता का मंदिर है।
  
  • महासमुंद - महासमुंद जिले का जिला मुख्यालय इसका नामकरण समुद्रगुप्त की सेनाओं द्वारा यहाॅं पड़ाव डालने  की वजह से महानदी के तट पर स्थित इस भाग का नाम महासमुंद पड़ा। यतियतन लाल ने यहाॅं अपने गुरू  विवेक वर्धन की याद में विवेक वर्धन मठ का निर्माण करवाया।
     
  • भिलाई - छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा औद्योगिक नगर जो भिलाई स्टील के नाम से जाना जाता है। भिलाई स्टील  प्लांट का शिलान्यास नवम्बर, 1955 में डाॅं राजेन्द्र प्रसाद के कर कमलों से हुआ। जबकि इसका उद्घाटन फरवरी,  1959 पं. जवाहर लाल नेहरू के द्वारा किया गया। भिलाई स्टील प्लांट के लिए विद्युत की आपूर्ति प्रारंभ में कोरबा  से किन्तु वर्तमान में स्वयं के प्लांट से विद्युत उत्पन्न की जाती है। लौह अयस्क की आपूर्ति दल्ली राजहरा की  खदाने, मैगनीज की आपूर्ति महाराष्ट्र के चंद्रपुर और भण्डारा से डोलोमाइट की आपूर्ति बिलासपुर के हिर्रीमाइस चूना-पत्थर नंदनी खुन्दनी से प्राप्त होती है। जबकि जल आपूर्ति तांदुला डेम से प्रारंभ में यहाॅ पर वन मिलियन  टन उत्पादन होता था। वर्तमान में 4.3 मिलियन टन उत्पादन होता है। भिलाई  में  राज्य का सबसे बड़ा चिडि़या घर मैत्री गार्डन स्थित है। भिलाई में ही विवेकानन्द तकनीकी विश्वविद्यालय स्थित है।
  
   
  • दुर्ग - दुर्ग जिले का जिला मुख्यालय जो शिवनाथ नदी के किनारे राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 53 (6) पर स्थित है।  यह राज्य के पांचवे संभाग का मुख्यालय है। वर्तमान में राज्य का सर्वाधिक साक्षर जिला प्रतिशत में सर्वाधिक नगरीय जनसंख्या यहाॅं एडवर्ड मेमोरियल हाल स्थित है, जिसे वर्तमान में हिन्दी भवन कहते है।
   
  • नगपुरा पाश्र्व नाथ तीर्थ - दुर्ग नगर के पश्चिम में शिवनाथ नदी के किनारे नगपुरा स्थित है, जो सुप्रसिद्ध पाश्र्व  नाथ मंदिर के लिए जाना जाता है। यहाॅं काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित भगवान पाश्र्व नाथ की मूर्ति है। इस मूर्ति का निर्माण कलचुरि राजकुमार शंकरगणमुग्ध तुंग के समय किया गया था। वर्तमान में यह सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ स्थल है।
  • बालोद - बालोद जिले का जिला मुख्यालय तांदुला नदी के किनारे स्थित है। यहाॅं कपिलेश्वर महादेव मंदिरों का  समूह हैं। बालोद के सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सरयु प्रसाद अग्रवाल और नरसिंह अग्रवाल थे। राज्य की दूसरी  सुगर मिल बालोद के निकट करकाभाट में माॅं दंतेश्वरी सुगर मिल के नाम से स्थापित की गई।
   
  • झलमला - बालोद के निकट झलमला स्थित है, जो गंगा मंईया के नाम से सुप्रसिद्ध है।
  
  • गुरूर - बालोद जिले की तहसील यहाॅं व्याग्र राज द्वारा निर्मित कालभैरव मंदिर प्रसिद्ध है।
  • राजनांदगाॅंव - प्राचीन नाम नंदग्राम वर्तमान में क्षेत्रफल की दृष्टि से राज्य का सबसे बड़ा जिला ठाकुर प्यारे  लाल यहाॅं के सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होंने सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की थी। छत्तीसगढ़ राज्य  का प्रथम आधुनिक उद्योग बंगाल नागपुर काटन मिल के नाम से 1894 में महंत घासीदास के प्रयासों से स्थापित  किया गया। यहीं राज्य की सबसे लंबी श्रमिक हड़ताल 1920 में ठाकुर प्यारे लाल के नेतृत्व में की गई। मानस मर्मज्ञ के नाम से प्रसिद्ध बलदेव प्रसाद मिश्रा राजनांदगाॅंव के थे। यहांॅ के दिग्विजय महाविद्यालय में गजानंन माधव मुक्ति बोध यहाॅं हिन्दी के प्राध्यापक थे, जिन्होंने चांद का मुॅंह टेढ़ा अंधेर में ब्रम्ह्राक्षस जैसे कविता संग्रह लिखे।  राज्य का प्रथम खेल विश्वविद्यालय राजनांदगाॅंव में स्थापित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में पंजीकृत पहला समाचार पत्र प्रजाहितैशी यहीं से प्रकाशित हुआ। छत्तीसगढ़ में नाचा के भीष्म पितामह दुलार सिंह मंदराजी (रवेली नाचा पाटी) यहीं के थे। छत्तीसगढ़ में दीदी बैंक की जनक पद्यम्श्री फूलबासन बाई यादव नांदगाॅंव से संबंधित  थी। वर्तमान में छत्तीसगढ़ का कृषि आधारित सबसे बड़ा उद्योग अली बहादूर द्वारा एबीस ग्रुप के नाम से संचालित  है। पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी जो सरस्वती पत्रिका के संपादक रहे जिन्होंने अश्रु दल, सतदल झलमला जैसे काव्य  संग्रह लिखे, का राजनांदगाॅंव से संबंध था।
  • डोंगरगढ़ (कामावतीपुरा) - माॅं बम्बलेश्वरी के मंदिरों के लिए प्रसिद्ध डोंगरगढ़ को प्राचीनकाल में कामावतीपुरा कहा  जाता था। यहाॅं कामसेन नामक राजा था। कामंदकला नामक नर्तकी की गाथा इतिहास प्रसिद्ध है। वीर सेन नामक राजा ने माॅं बम्बलेश्वरी सुप्रसिद्ध मंदिर का निर्माण करवाया। वर्तमान में हिन्दू, बौद्ध, जैन, ईसाई धर्म के केन्द्र के  रूप में इसे छत्तीसगढ़ का जेरूसलम कहा जा सकता है।
  

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